नरेश मेहता
(1922-2000)
नरेश मेहता का जन्म सन् 1922 में मालवा के (मध्य प्रदेश) के शाजापुर कस्बे में हुआ था। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के पश्चात उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद में कार्यक्रम अधिकारी के रूप में कार्य प्रारंभ किया, तत्पश्चात विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने अनेक साहित्यिक पत्रों का संपादन
भी किया।
नरेश मेहता की ख्याति 'दूसरा सप्तक' के प्रमुख कवि के रूप में प्रारंभ हुई। आगे चलकर वे विविध विधाओं के यशस्वी रचनाकार के रूप में जाने गए। नरेश मेहता को उनके प्रसिद्ध उपन्यास वह पथ बंधु था के कारण विशेष प्रसिद्धि मिली। कवि के रूप में आरंभ में वे साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित थे, किन्तु बाद में उससे मोहभंग होने पर उन्होंने वैष्णव भावधारा को अपनाया। सनातन मानव मूल्यों में नरेश मेहता की अटूट आस्था थी। सन् 2000 में उनका निधन हो गया।
बनपाखी सुनो, बोलने तो चीड़ को तथा मेरा समर्पित एकांत नरेश मेहता के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं। संशय की एक रात उनका प्रसिद्ध खंडकाव्य है। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नए कवि के रूप में नरेश मेहता की रचनाओं में दो बातें उभरकर सामने आती हैं- मानव और अस्तित्व की खोज तथा आधुनिक संकट से उत्पन्न आशंका और भय की अभिव्यक्ति। मानव के भविष्य के प्रति उनका विश्वास उनकी हर रचना में विद्यमान है। उनकी रचनाओं में सर्वत्र आधुनिकता का स्वर बोलता है तथा शिल्प और
अभिव्यंजना के स्तर पर उनमें ताज़गी और नयापन है।
मृत्तिका कविता सीधे-सरल बिंबों के सहारे पुरुषार्थी मनुष्य और मिट्टी के संबंधों पर प्रकाश डालती है। मनुष्य के पुरुषार्थ के बदलते रूपों के अनुरूप मिट्टी कभी माँ, कभी प्रिया, कभी प्रजा और कभी चिन्मयी शक्ति के रूप में ढल जाती है। पुरुषार्थ मिट्टी को दैवी शक्ति में बदल देता है।
मृत्तिका
मैं तो मात्र मृत्तिका हूँ
जब तुम
मुझे पैरों से रौंदते हो
तथा हल के फाल से विदीर्ण करते हो
तब मैं
धन-धान्य बनकर मातृरूपा हो जाती हूँ।
जब तुम
मुझे हाथों से स्पर्श करते हो
तथा चाक पर चढ़ाकर घुमाने लगते हो
तब मैंकुंभ और कलश बनकर
जल लाती तुम्हारी अंतरंग प्रिया हो जाती हूँ।
जब तुम मेले में मेरे खिलौने रूप पर
आकर्षित होकर मचलने लगते हो
तब मैंतुम्हारे शिशु-हाथों में पहुँच प्रजारूपा हो जाती हूँ।
पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं -
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ।
(प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्य हो जाती हूँ)
विश्वास करो
यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।
(अभ्यासमाला)
(अभ्यासमाला)
* बोध एवं विचार
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दो :
(क) रौंदे और जोते जाने पर भी मिट्टी किस रूप में बदल जाती है ?
उत्तर : मिट्टी रौंदे और जोते जाने पर भी मातृरूपा हो जाती है। वह अपने पुत्रों को धन-धान्य से भर देती है।
उत्तर : मिट्टी रौंदे और जोते जाने पर भी मातृरूपा हो जाती है। वह अपने पुत्रों को धन-धान्य से भर देती है।
(ख) मिट्टी के 'मातृरूपा' होने का क्या आशय है ?
उत्तर : मिट्टी के मातृरूपा होने का आशाय है - वह मनुष्य को धन-धान्य देकर उसका पालन-पोषण करती है।
उत्तर : मिट्टी के मातृरूपा होने का आशाय है - वह मनुष्य को धन-धान्य देकर उसका पालन-पोषण करती है।
(ग) जब मनुष्य उद्यमशील रहकर अपने अहंकार को पराजित करता हूँ तो मिट्टी उसके लिए क्या बन जाती?
उत्तर : तब मिट्टी उसके लिए चिन्मयी शक्ति बन जाती है। वह उसकी आराध्या बन जाती है।
उत्तर : तब मिट्टी उसके लिए चिन्मयी शक्ति बन जाती है। वह उसकी आराध्या बन जाती है।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तरलिखो:
(क) 'मृत्तिका' कविता में पुरुषार्थी मनुष्य के हाथों आकार पाती मिट्टी के किन-किन स्वरूपों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर : मृत्तिका कविता में कवि ने मिट्टी के माँ, प्रिया, शिशु और देवी (दैव) रूपों का उल्लेख किया है। माँ के रूप में वह मनुष्य को धन-धान्य देती है, प्रिया के रुप में सुंदर कलश और जल देती है, शिशु के रुप में खिलौने देती है और देवी के रूप में प्रतिमा बनकर बल प्रदान करती है।
उत्तर : मृत्तिका कविता में कवि ने मिट्टी के माँ, प्रिया, शिशु और देवी (दैव) रूपों का उल्लेख किया है। माँ के रूप में वह मनुष्य को धन-धान्य देती है, प्रिया के रुप में सुंदर कलश और जल देती है, शिशु के रुप में खिलौने देती है और देवी के रूप में प्रतिमा बनकर बल प्रदान करती है।
(ख) मिट्टी के किस रूप को 'प्रिय रूप' माना है ? क्यों?
उत्तर : मिट्टी का कुंभ और कलश रुप प्रिया रुप है। क्योंकि इस रुप में मिट्टी मानव को अपने सुंदर ढलवाँ रूप से तथा मीठे जल से तृप्त करती है। इस प्रकार वह बाहर-भीतर से रसवती बनकर आती है।
उत्तर : मिट्टी का कुंभ और कलश रुप प्रिया रुप है। क्योंकि इस रुप में मिट्टी मानव को अपने सुंदर ढलवाँ रूप से तथा मीठे जल से तृप्त करती है। इस प्रकार वह बाहर-भीतर से रसवती बनकर आती है।
(ग) मिट्टी प्रजारूपा कैसे हो जाती है?
उत्तर : जब बच्चे खिलौनों के लिए मचलते हैं तो मानव अपने परिश्रम द्वारा मिट्टी को नए-नए खिलौनों का रूप दे देता है। इससे बच्चे प्रसन्न हो जाते हैं। इस प्रकार मिट्टी प्रजारूपा हो जाती है।
उत्तर : जब बच्चे खिलौनों के लिए मचलते हैं तो मानव अपने परिश्रम द्वारा मिट्टी को नए-नए खिलौनों का रूप दे देता है। इससे बच्चे प्रसन्न हो जाते हैं। इस प्रकार मिट्टी प्रजारूपा हो जाती है।
(घ) पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व क्यों कहा गया है?
उत्तर : पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व कहा गया है क्योंकि उसी के प्रयत्न से मिट्टी अनेक रूपों में ढलती है। यदि मिट्टी पर प्रयत्न न किया जाए तो उसमें से कोई भी रूप नहीं बन सकता।
उत्तर : पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व कहा गया है क्योंकि उसी के प्रयत्न से मिट्टी अनेक रूपों में ढलती है। यदि मिट्टी पर प्रयत्न न किया जाए तो उसमें से कोई भी रूप नहीं बन सकता।
(ङ) मिट्टी और मनुष्य में तुम किस भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण मानते हो और क्यों?
उत्तर : मैं मिट्टी और मनुष्य में मनुष्य की भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण मानता हूँ, क्योंकि मिट्टी में उर्वरा-शक्ति है, किन्तु मानवीय श्रम के बिना वह सोई पड़ी रहती है। उससे कोई लाभ नहीं होता।
उत्तर : मैं मिट्टी और मनुष्य में मनुष्य की भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण मानता हूँ, क्योंकि मिट्टी में उर्वरा-शक्ति है, किन्तु मानवीय श्रम के बिना वह सोई पड़ी रहती है। उससे कोई लाभ नहीं होता।
3. सप्रसंग व्याख्या करो:
(क) पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ।
उत्तर : भाव यह है कि मिट्टी में असीम शक्तियाँ सोई पड़ी हैं। मनुष्य परास्त होने पर, या अहं भाव त्यागने पर उसकी शरण में जाता है, तब मिट्टी उसे अवश्य सहारा देती है। आवश्यकता पड़ने पर मिट्टी उसके लिए शक्ति का अवतार धारण करती है।
उत्तर : भाव यह है कि मिट्टी में असीम शक्तियाँ सोई पड़ी हैं। मनुष्य परास्त होने पर, या अहं भाव त्यागने पर उसकी शरण में जाता है, तब मिट्टी उसे अवश्य सहारा देती है। आवश्यकता पड़ने पर मिट्टी उसके लिए शक्ति का अवतार धारण करती है।
(ख) यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।
उत्तर : मनुष्य का सबसे बड़ा देवत्व यह है कि वह अपनी इच्छा से प्रेरित होकर पुरुषार्थ करता है। यही पुरुषार्थ ही देवत्व है। इसके होने पर मिट्टी स्वयं को अनेक रूपों में ढाल लेती है। अर्थात मनुष्य के पुरुषार्थ से सृष्टि में अनेक सुखसाधन बन जाते हैं।
उत्तर : मनुष्य का सबसे बड़ा देवत्व यह है कि वह अपनी इच्छा से प्रेरित होकर पुरुषार्थ करता है। यही पुरुषार्थ ही देवत्व है। इसके होने पर मिट्टी स्वयं को अनेक रूपों में ढाल लेती है। अर्थात मनुष्य के पुरुषार्थ से सृष्टि में अनेक सुखसाधन बन जाते हैं।
निम्नलिखित वाक्यों में उपयुक्त विराम-चिह्न लगाओ
(क) महाभारत एक महान ग्रंथ है
उत्तर : महाभारत एक महान ग्रंथ है।
(क) महाभारत एक महान ग्रंथ है
उत्तर : महाभारत एक महान ग्रंथ है।
(ख) युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल और सहदेव पाँच भाई थे।
उत्तर : युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल और सहदेव पाँच भाई थे।
उत्तर : युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल और सहदेव पाँच भाई थे।
(ग) भारत में कुल कितने प्रदेश हैं
उत्तर : भारत में कुल कितने प्रदेश हैं ?
उत्तर : भारत में कुल कितने प्रदेश हैं ?
(घ) रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि थे
उत्तर : रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि थे।
उत्तर : रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि थे।
(ङ) कर्ण ने कहा मित्रतो सुखद छाया है
उत्तर : कर्ण ने कहा मित्रतो सुखद छाया है।
उत्तर : कर्ण ने कहा मित्रतो सुखद छाया है।
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