Pad tray -Class 10-Aalok Bhag 2 ( पद-त्रय -मीराँबाई -Class 10) - पड्या खण्ड
HINDI4 -CLASS X -SEBA -ANSWER SHEET |
मीराँबाई
(1498-1546)
हिंदी की
कृष्ण-भक्ति काव्य धारा में कवयित्री मीराँबाई को महाकवि सूरदास जी के बाद ही
स्थान प्राप्त है। हालाँकि हिंदी कवयित्रियों में आप अग्रणी स्थान की अधिकारी हैं।
भारतीय जन-साधारण के बीच कबीरदास, सूरदास और
तुलसीदास के भजनों की तरह मीराँ-भजन भी समान रूप से प्रिय रहे हैं। कवयित्री
मीराँबाई द्वारा
- विरचित गीत-पद हिंदी के साथ-साथ भारतीय
साहित्य की भी अमूल्य निधि हैं। भक्ति-भावना एवं काव्यत्व के सहज संतुलन के कारण
आपके गीत-पद अनूठे बन पड़े हैं।
कवयित्री मीराँबाई
भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य आराधिका थीं। अपने आराध्य के प्रति एकनिष्ठ प्रेम-भक्ति
के कारण आपको 'कृष्ण प्रेम-दीवानी' की आख्या मिली। अपने आराध्य के प्रति
पूर्ण समर्पण एवं उनकी एकनिष्ठ साधना का जो दृष्टांत भक्तकवयित्री मीराँबाई ने
प्रस्तुत किया, वह सबके लिए आदरणीय एवं अनुकरणीय है।
कृष्ण-प्रेम-भक्ति
की सजीव प्रतिमा मीराँबाई के जीवन वृत्त को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद रहा
है। कहा जाता है कि आपका जन्म सन् 1498 के आस-पास प्राचीन राजपूताने के अंतर्गत 'मेड़ता' प्रांत के 'कुड़की' नामक स्थान में
राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा में हुआ था। बचपन में ही माता के निधन होने और पिता
राव रत्न सिंह
के भी युद्धों में
व्यस्त रहने के कारण बालिका मीराँबाई का लालन-पालन उनके दादा राव दूदाजी की देखरेख
में हुआ। परम कृष्ण-भक्त दादाजी के साथ रहते-रहते बालिका मीराँ के कोमल हृदय में
कृष्ण-भक्ति का बीज अंकुरित होकर बढ़ने लगा। आगे आपने कृष्ण जी को ही अपना आराध्य
प्रभु एवं पति मान लिया।
सन् 1516 में मेवाड़ के महाराजा सांगा के ज्येष्ठ
पुत्र कुँवर भोजराज के साथ मीराँबाई का विवाह हुआ, परंतु दुर्भाग्यवश विवाह के सात वर्ष बाद ही भोजराज जी का
स्वर्गवास हो गया। राजपूतों की तत्कालीन परंपरा का विरोध करते हुए क्रांतिकारिणी
मीराँ सती नहीं हुई। वे जग सुहाग को मिथ्या और अविनाशी प्रभु कृष्ण जी को सत्य
मानती थीं। प्रभु की आराधना और साधुओं की संगति में उनका समय बीतता चला। राजघराने
की ओर से उन्हें तरह-तरह की यातनाएँ दी जाने लगी, परंतु मीराँबाई भक्त प्रहलाद की तरह टस से मस नहीं हुई। अब
वे अपने प्रभु गिरिधर नागर की खोज में राजप्रासाद से निकल पड़ी। साधु संतों के साथ
घूमते-पामते और अपने प्रभु को रिझाने के लिए नाचते गाते मीराँबाई अंत में
द्वारकाधाम पहुँचीं। प्रसिद्ध है कि वहाँ श्री रणछोड़ जी के मंदिर में अपने प्रभु
गिरिधर गोपाल का भजन-कीर्तन करते-करते सन् 1546 के आसपास वे भगवान की मूर्ति में सदा के लिए विलीन हो गयीं।
कवयित्री मीराँबाई की रचनाओं में प्रामाणिकता की दृष्टि से
कृष्ण-भक्तिपरक लगभग दो सौ फुटकर पद ही विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये फुटकर पद
मीराँबाई की पदावली नाम से प्रसिद्ध हैं। ये पद कवयित्री मीराँबाई के कृष्ण
भक्तिमय हृदय के स्वत: उद्गार हैं। वैसे तो उन्होंने मुख्य रूप से हिंदी की उपभाषा
राजस्थानी में काव्य
रचना की है, परंतु उसमें ब्रज, खड़ी बोली, पंजाबी, गुजराती आदि के भी
शब्द मिल जाते हैं। कृष्ण प्रेम-माधुरी, सहज अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय के मिलन से कवयित्री
मीराँबाई के पद त्रिवेदी संगम के समान पावन एवं महत्वपूर्ण बन पड़े हैं।
'पद-त्रय' शीर्षक के अंतर्गत
संकलित प्रथम पद में आराध्य प्रभु कृष्ण के श्री 'चरणों में कवयित्री मीराँबाई के पूर्ण समर्पण का भाव
व्यंजित हुआ है। वे कहती हैं कि मैं तो गोपाल जी के श्री चरणों की शरण में आ गयी
हूँ। पहले यह बात किसी को मालूम नहीं थी, पर अब तो संसार को इस
बात का पता चल गया है। अतः प्रभु गिरिधर मुझ पर कृपा करें, मुझे दर्शन दें, शीघ्र ही मेरी सुध लें।
मैं तो प्रभु जी के चरण-कमलों में अपने को न्योछावर कर चुकी हूँ। द्वितीय पद में
कवयित्री मीराँबाई अपने जीवनाधार सुंदर श्याम जी को अपने घर आने का आमंत्रण देते
हुए कहती हैं कि हे स्वामी ! तुम्हारे विरह में मैं पके पाण की तरह पीली पड़ गयी
हूँ। तुम्हारे आए बिना मैं सुध-बुध खो बैठी हूँ, मेरा ध्यान तो तुम्हीं
पर है, मुझे
किसी दूसरे की आशा नहीं है, अतः तुम जल्दी आकर मुझसे
मिलो और मेरे मान की रक्षा करो। तृतीय पद में कवयित्री मनुष्य मात्र से राम
(कृष्ण) नाम का रस पीने का आह्वान करते हुए कहती हैं कि सभी मनुष्य कुसंग छोड़ें
और सत्संग में बैठकर कृष्ण का कीर्तन सुनें, वे काम- क्रोधादि छ:
रिपुओं को चित्त से निकाल दें और प्रभु कृष्ण प्रेम-रंग-रस से सराबोर हो उठे।
पद-त्रय
(1)
मैं तो चरण लगी
गोपाल॥
जब लागी तब कोऊँ न
जाने, अब जानी संसार।
किरपा कीजै, दरसन दीजै, सुध लीजै तत्काल।
मीराँ कहै प्रभु
गिरधर नागर चरण-कमल बलिहार॥
(2)
म्हारे घर आवौ
सुंदर श्याम ॥
तुम आया बिन सुध
नहीं मेरो, पीरी परी जैसे पाण।
म्हारे आसा और ण
स्वामी, एक तिहारो ध्याण।
मीरों के प्रभु
वेग मिलो अब, राषो जी मेरो माण॥
(3)
राम नाम रस पीजै
मनुआँ, राम नाम रस पीजै॥
तज कुसंग सतसंग
बैठ णित हरि चरचा सुण लीजै।
काम क्रोध मद लोभ
मोह कूँ, बहा चित्त तूं दीजै।
मीराँ के प्रभु
गिरधर नागर, ताहि के रंग में भीजै॥
.* बोध एवं विचार
1. 'हाँ' या 'नहीं' में उत्तर दो:
(क)हिंदी की कृष्ण-भक्ति काव्य-धारा में
कवयित्री मीराँबाई का स्थान सर्वोपरि है।
उत्तर : 'नहीं' ৷
(ख) कवयित्री मीराँबाई भगवान श्रीकृष्ण की
अनन्य आराधिका थीं।
उत्तर : हाँ' ৷
(ग) राजपूतों की तत्कालीन परंपरा का विरोध
करते हुए क्रांतिकारिणी मीरा नहीं हुई।
उत्तर : हाँ' ৷
(घ) मीराँबाई अपने को श्री कृष्ण जी के
चरण-कमलों में पूरी तरह समर्पित नहीं कर पायी थीं।
उत्तर : 'नहीं'
(ड.) मीराँबाईने सुंदर श्याम जी को अपने
घर आने का आमंत्रण दिया है।
उत्तर : हाँ' ৷
2. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:
(क) कवयित्री मीराँबाई का जन्म कहाँ हुआ
था?
उत्तर : कवयित्री मीराँबाईका जन्म मेड़ता प्रांत
के कुड़की नामक स्थान में हुआ था।
(ख) भक्त-कवयित्री मीराँबाई को कौन-सी
आख्या मिली है?
उत्तर : भक्त कवयित्री मीराँबाईको कृष्ण प्रेम
दोवानी आख्या मिली है।
(ग) मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद
किस नाम से प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर : मीराँबाई के कृष्ण भक्तिपरक फुटकर पद मीराँबाईकी
पदावली नाम से प्रसिद्ध हैं।
(घ) मीराँबाई के पिता कौन थे?
उत्तर : राव रतन सिंह मीराँबाई के पिता थे।
(ड.) कवयित्री मीराँबाई ने मनुष्यों से
किस नाम का रस पीने का आह्वान किया है?
उत्तर : कवयित्री मीराँबाईने मनुष्यों से राम नाम
का रस पीने का आहवान किया है।
3. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में):
(क) मीराँ-भजनों की लोकप्रियता पर प्रकाश
डालो।
उत्तर : कवयित्री मीराँबाईद्वारा विरचित गीत पद
हिन्दी के साथ साथ भारतीय साहित्य की भी अमूल्य निधि हैं। भक्ति भावना एंव
काव्यत्व के सहज संतलन के कारण आपके गीत पद की लोकप्रियता बढ़ गयी है।
(ख) मीराँबाई का बचपन किस प्रकार बीता था?
उत्तर : बचपन में ही माता के निधन होने और पिता
राव रत्न सिंह के भी युद्धों मे व्यस्त रहने के कारण बालिका मीराँबाईका लालन पालन
उनके दादा राव दुदाजी की देखरेख में हुआ। इसी तरह मीराँबाईका बचपन बीता था।
(ग) मीराँबाईका देहावसान किस प्रकार हुआ
था?
उत्तर : मीराँबाईका देहावसान सन 1546 के आस-पास श्री रणछोड़ जी के मंदिर में
अपने प्रभु गिरिधर गोपाल का भजन कीर्तन करते भदवान की मूर्ति में सदा के लिए विलीन
हो गयी।
(घ ) कवयित्री मीराँबाई की काव्य भाषा पर
प्रकाश डालो।
उत्तर : कवयित्री
मीराँबाई ने मुख्य रूप से हिंदी की उपभाषा राजस्थानी
में काव्य रचना की है, परंतु उसमें ब्रज, खड़ी बोली, पंजाबी, गुजराती आदि के भी
शब्द मिल जाते हैं। कृष्ण प्रेम-माधुरी, सहज अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय के मिलन से कवयित्री
मीराँबाई के पद त्रिवेदी संगम के समान पावन एवं महत्वपूर्ण बन पड़े हैं।
4. संक्षेप में उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में):
(क) प्रभु कृष्ण के चरण-कमलों पर अपने को
न्योछावर करने वाली मीराँबाई ने अपने आराध्य से क्या-क्या निवेदन किया है ?
उत्तर : मीराँबाई
अपने आराध्य से निवेदन करती हुई कहती हैं कि है गोपाल! मैं तो तुम्हारे चरणों की
शरण में आ गयी हूँ। जब मेरी प्रीति तुमसे आरम्भ हुई थी, तब तो किसी को भी पता नहीं चला और अब
सारा संसार जान गया है। आप कृपा करके मुझे दर्शन दें और अपनी शरण में लें।
(ख) सुंदर श्याम को अपने घर आने का
आमंत्रण देते हुए कवयित्री ने उनसे क्या क्या कहा है?
उत्तर : सुन्दर श्याम को अपने घर आने का आमंत्रण
देते हुए कवयित्री ने उनसे कहा कि है सुन्दर श्याम तुम मेरे घर आओ। तुम्हारे आय
बिना मुझे सुख नहीं मिल सकता। तुम्हारे अतिरिक्त मेरी कोई आशा का आधार नहीं है।
मुझे शीघ्र दर्शन दीजिए और मेरे सम्मान की रक्षा
कीजिए।
(ग) मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का
रस पीने का आह्वान करते हुए मीराँबाई ने उन्हें कौन-सा उपदेश दिया है?
उत्तर : मनुष्य मात्र से राम (कृष्ण) नाम का रस
पीने का आहवान करते हुए मीराँबाईने यह उपदेश दिया कि -- हे मनुष्य।तु राम के नाम
का रस पी अर्थात राम के नाम का स्मरण करके आनंद प्राप्त कर।तु कुसंगति को छोड़कर
अच्छी संगति में बैठकर हमेशा हरि की चर्चा सुना कर। अपने मन से काम,क्रोध, मद, लोभ और मोह को निकाल दे और शाम (कृष्ण)
से प्रेम कर।
5. सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में):
(क) मीराँबाई के जीवन वृत्त पर प्रकाश
डालो ।
उत्तर : कृष्ण प्रम भक्ति की सजीव प्रतिमा मीराँबाईके
जीवन वृत्त को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद रहा है। कहा जाता है कि आपका
जन्म सन 1498 के आस-पास प्राचीन राजपूताने के अंतर्गत मेड़ता प्रांत के कूड़की नामक स्थान में
राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा में हुआ था। बचपन में ही माता के निधन होने और पिता राव रत्न सिंह के भी युद्धों में
व्यास्त रहने के कारण बालिका मीराँबाईका लालन-पालन उनके दादा राव दुदाजी की देखरेख
में हुआ। परम कृष्ण-भक्त.दादाजी के साथ रहते रहते
बालिका मीरा के कोमल हृदय में कृष्णा
भक्ति का बीज
अंकुरित होकर बढ़ने लगा। आगे आपने कृष्ण जी को ही अपना आराध्या प्रभु एंव पति मान लिया।
(ख) पठित पदों के आधार पर मीराँबाईकी
भक्ति भावना का निरूपण करो।
उत्तरः मीराँ
कृष्ण की परम भक्त थी, किन्तु 16वीं शताब्दी के प्रचलित कृष्णोपासक सम्प्रदायों में से
उन्हें किसी भी सम्प्रदाय से सम्बन्धित नहीं माना जा सकता। उनके
पदों में कहीं-कहीं ज्ञानमार्गी संतों की छाप है - भक्ति सूत्रकार के अनुसार मीराँ
का भक्ति भाव भी गोपी (राधा) जैसा ही है। मीराँ ने कृष्ण को अपने जन्म-जन्मान्तर
के पति के रूप में माना है। अतः वह उन्हें इस रूप में नहीं देखती कि मानो वे उसे
कभी मिले ही न हों। ईश्वर को अपना पति मानकर स्वयं नारी भाव की कल्पना करके उससे
मिलने को व्याकुल होना प्रेम परकाष्ठा का अनुभव माना जाता है। मीराँ अपने आराध्य
से कहती हैं, हे गिरधर, अब तो मेरी सुध लो। मैं तो तुम्हारे प्रेम में मरी जा रही
हूँ और तुम हो कि मुड़ कर देखते भी नहीं। तुम्हारा अनुग्रह ही तो मेरा सर्वस्व है।
तुम अपनी इस दासी के इन सब कष्टों को दूर करो।
(ग) कवयित्री मीराँबाई का साहित्यिक परिचय
प्रस्तुत करो।
उत्तर : कवयित्री मीराँबाईकी रचनाओं में
प्रामाणिकता की दृष्टि से कृष्ण-भक्तिपरक लगभग दो सौ फुटकर पद ही विशेष रूप से
उल्लेखनीय हैं। ये फुटकर पद मीराँबाई की पदावली नाम से प्रसिद्ध हैं। ये पद
कवयित्री मीराँबाई के कृष्ण भक्तिमय हृदय के स्वत: उद्गार हैं। वैसे तो उन्होंने
मुख्य रूप से हिंदी की उपभाषा राजस्थानी में काव्य रचना की है, परंतु उसमें ब्रज, खड़ी बोली, पंजाबी, गुजराती आदि के भी
शब्द मिल जाते हैं। कृष्ण प्रेम-माधुरी, सहज अभिव्यक्ति और सांगीतिक लय के मिलन से कवयित्री
मीराँबाई के पद त्रिवेदी संगम के समान पावन एवं महत्वपूर्ण बन पड़े हैं।
6. सप्रसंग व्याख्या करो:
(क)
"मैं तो चरण लगी..............चरण-कमल
बलिहार।"
उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक
हिन्दी किरण के काव्यखंड के पद-युग्म से ली गई है, इसकी कवयित्री मीराँबाई हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में अपने आराध्य के प्रति मीराँ के प्रेम, तथा भक्ति-भाव को दर्शाया गया है।
मीराँ कहती हैं कि हे गोपाल ! मैं
तुम्हारे शरण में आ गयी हूँ, जब मैंने तुमसे प्रेम आरम्भ किया था, तब तो किसी को भी कुछ पता नहीं चला, परन्तु जब वह प्रेम धीरे-धीरे बढ़ता गया
तो वह सारी दुनिया को पता चल गया है।आप मुझ पर कृपा करें और मुझे दर्शन देकर मेरी
सुध लें। मीराँ कहती हैं कि हे गिरधर नागर! मैं तो तुम्हारे चरण-कमलों पर न्यौछावर
हो गयी हूँ।
इस पद की पंक्तियों में मीराँबाई के प्रेम और मार्मिकता का
सुन्दर वर्णन हुआ है।
(ख)"म्हारे घर आवौ.............राषो
जी मेरे माण।"
उत्तरः प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक
के अंतर्गत कवयित्री मीराँबाई रचित पद-त्रय शीर्षक कविता से लिया गया है।
यहाँ मीराँबाईने सुन्दर श्याम को अपने घर बुलाकर अपनी विरह वेदना प्रकाश किये
हैं।
मीराँबाईने सुन्दर श्याम को अपने घर
बुलाकर कहा -- हे श्याम तुमहारे आये बिना मुझे सुख नहीं मिल सकता। तुम्हारे दुख के
कारण पेड़े के पत्ते की तरह मैं पीली पड़ गई हुँ। हे श्वामी। तुम्हारे अतिरिक्त
मेरी आशा का
आधार कोई नहीं है, इसलिए तुम्हारा ही ध्यान करती हुँ। मुझे
तुरन्त आकर दर्शन दीजिए और मेरे सम्मान की रक्षा कीजिए।
यहाँ मीराँबाईको अपनी विरहानुभूति प्रकाश हुआ है।
(ग)"राम नाम रस
पीजै..............ताहि के रंग में भीजै।"
उत्तरः प्रस्तुत अवतरण कवयित्री मीराँबाईद्वारा
रचित पद-पत्र शीर्षक कविता से ली गयी है। यहाँ मीराँबाईराम नाम का रस पीने के लिए
मनुष्य को आहवान किया है।
मीराँबाई ने कहा कि
हे मनुष्य । तु राम के नाम का रस पी अर्थात राम का नाम स्मरण कर आनन्द ले। तु
कुसंगति को छोड़ कर सुसंगति में बैठकर हमेशा हरि की चर्चा सुना कर।तु अपने मन से
काम, क्रोध, मद, लोभ
और मोह को निकाल
दे और गिरिधर नागर से प्रेम कर।
यहाँ मीराँबाई मनुष्य
को दास्य भक्ति की ओर इंगित किया है।
1. निम्नांकित शब्दों के तत्सम रूप लिखो:
किरपा, दरसन, आसा, चरचा, श्याम, धरम, किशन, हरख
उत्तर : किरपा =
कृपा
दरसन = दर्शन
आसा = आशा
चरचा = चर्चा
श्याम = श्यामल
धरम = धर्म
किशन = कृष्णा
हरख = हर्ष
2. वाक्यों में प्रयोग करके निम्नलिखित लगभग
समोच्चरित शब्द जोड़ों
के अर्थ का अंतर
स्पष्ट करो:
संसार-संचार, चरण-शरण, दिन-दीन, कुल-कूल, कली-कलि, प्रसाद-प्रासाद, अभिराम-अविराम, पवन-पावन
उत्तर :
संसार = शंकरदेव संसार के महापुरुषों में से एक है।
संचार = भारत में
कई संचार निगम हैं।
चरण = राम ने अपने पिताजी के चरण पकड़ कर
माफी मांगी।
शरण = पति के
मृत्यु के बाद मीराँबाईने श्रीकृष्ण जी के शरण में आयी।
दिन = रबिवार छुट्टी के दिन है।
दीन = हम दीन व्यक्ति को सहारा देना
चाहिए।
कुल = हरिधन ने अपने कुल मर्यादा निभाई।
कूल = पागलादिया
नाद के दोनों कूल गंदगी से भरे हैं।
कली = कली से फूल बनता है।
कलि = चार युगों
में से कलि अंतिम युग है।
प्रसाद= नाम कीर्तन की समाप्ति पर प्रसाद का वितरण होता है।
प्रासाद= प्राचीन
राजा का प्रासाद बहुत बड़ा और सुन्दर था।
अभिराम= मानाह राष्ट्रीय उद्यान का दृश्य अभिराम है।
अविराम= आजकल ठंडी
अविराम बढ़ती जा रही है।
पवन= आज का पवन ठण्ड है।
पावन= शिशु का
हृदय पावन हैं।
3. निम्नलिखित शब्दों के लिंग-परिवर्तन करो:
कवि, अधिकारिणी, बालिका, दादा, पति, भगवान, भक्तिन
उत्तर : कवि =
कवियित्री
अधिकारिणी =
अधिकारी
बालिका = बालक
दादा = दादी
पति = पत्नि
भगवान = भगवती
भक्तिन = भक्त
4. विलोमार्थक शब्द लिखो:
पूर्ण, सजीव, प्राचीन, कोमल, अपना, विरोध, मिथ्या, कुसंग, सुंदर, अपमान, गुप्त, आनंद
उत्तर : पुर्ण = अपूर्ण
सजीव = निर्जीव
प्राचीन = नवीन
कोमल = कठिन
अपना = पराया
विरोध = समर्थन
मिथ्या = सत्य
कुसंग = सुसंग
सुंदर = असुन्दर
अपमान = मान
गुप्त= प्रकाश
आनंद = निरानंद
5. निम्नलिखित शब्दों के वचन-परिवर्तन करो:
कविता, निधि, कवि, पौधा, कलम, औरत, सखी, बहू
उत्तर :
कविता = कविताएँ
निधि = निधियाँ
कवि = कवि
पौधा = पौधे
कलम = कलमें
औरत = औरते
सखी = सखियाँ
बहू = बहुए