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Chota Jadugar -Class 10-Aalok Bhag 2 ( छोटा जादूगर- जयशंकर प्रसाद -Class 10-seba)

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Chota Jadugar  -Class 10-Aalok Bhag 2 (    छोटा जादूगर-  जयशंकर प्रसाद   -Class 10-seba) 

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chota jadugar 

                                        

                                                                 जयशंकर प्रसाद
                                                                   (1889-1937)

सभ्यताबाबू जयशंकर प्रसाद का आविर्भाव आधुनिक हिन्दी साहित्य के छायावाद-युग (1918 ई. से 1938 ई. तक) में हुआ था । आपने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध और आलोचना के क्षेत्रों में अमर लेखनी चलाकर आधुनिक कालीन हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। साहित्यकार के अलावा आप इतिहास एवं पुरातत्व के विद्वान तथा एक गंभीर चिन्तक भी थे । भारतीय -संस्कृति, धर्म-दर्शन, भक्ति-अध्यात्म के प्रति गहरी रुचि रखने वाले प्रसाद
जी ने इन्हें अपनी रचनाओं के माध्यम से उजागर करने का भरपूर प्रयास किया है। साथ ही आपने यांत्रिकता, बुद्धिवादिता और भौतिकता की अतिरेकता से उत्पन्न आधुनिक जीवन की विविध मूलभूत समस्याओं को चिह्नित करके अपने ढंग से उनका समाधान निकालने की भी कोशिश की है। इन महान प्रयासों के कारण आपके साहित्य की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।
               प्रसाद जी का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित कान्यकुब्जीय वैश्य परिवार में 1889 ई. में हुआ था। पिता देवीप्रसाद और बड़े भाई शंभुरत्न जी के असमय निधन होने के कारण सत्रह वर्ष की अवस्था में ही पैतृक कारोबार तथा घर-परिवार का सारा दायित्व प्रसाद जी को संभालना पड़ा। आपने घर पर ही संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी और
हिंदी का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। साथ ही वेद, पुराण, उपनिषद, बौद्ध एवं जैन ग्रंथ, भारतीय इतिहास आदि का अध्ययन भी आपने किया। 'कलाधर' नाम से ब्रजभाषा में कविता-लेखन के साथ प्रसाद जी का साहित्यिक जीवन आरंभ हुआ था। परंतु आपने शीघ्र ही खड़ीबोली को अपनाया और अलग-अलग विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की। आपके द्वारा प्रयुक्त खड़ीबोली प्रौढ़, प्रांजल कलात्मक एवं संस्कृतनिष्ठ
रही है। 1937 ई. में आपका देहावसान हुआ।
           भारतीय संस्कृति के चितेरे प्रसाद जी मूलत: कवि-हृदय के थे। आप छायावादी काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। आपकी काव्य-रचनाएँ हैं—

उर्वशी, वनमिलन, प्रेमराज्य, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छ्वास, बभ्रुवाहन, काननकुसुम, प्रेमपथिक, करुणालय, महाराणा का महत्व, झरना, आँसू (खंडकाव्य), लहर और कामायनी (महाकाव्य) उनके द्वारा विरचित नाटक हैंसज्जन कल्याणी-परिणय, प्रायश्चित, राज्यश्री, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कंदगुप्त, एक घुट, चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी प्रसाद जी ने तीन उपन्यासों की भी रचना की है। कंकाल, तितली और इरावती उनके द्वारा विरचित निबंधों का
संग्रह है-काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
             प्रसाद जी ने लगभग सत्तर कहानियाँ हिंदी को भेंट की हैं। ये कहानियां छाया, प्रतिध्वनि, आकाश-दीप, आधी, इंद्रजाल आदि संग्रहों में संकलित हैं। उनकी प्रथम कहानी 'ग्राम' 1911 ई. में 'इंदु' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कहानीकार के रूप में आप भाववादी धारा के प्रवर्तक कहलाएँ। आपकी अधिकांश कहानियों में चारित्रिक उदारता, प्रेम, करुणा, त्याग बलिदान, अतीत के प्रति मोह से युक्त भावमूलक
आदर्श की अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने अपने समकालीन समाज की आर्थिक विपन्नता, निरीहता, अन्याय और शोषण को भी कुछेक कहानियों में चित्रित किया है। सहयोग', 'गुदड़ी के लाल', 'अघोरी का मोह', 'विराम चिह्न', 'आकाश-दीप', 'पुरस्कार', 'ममता', 'समुद्र-संतरण', 'मधुआ', 'इंद्रजाल', 'छोटा जादूगर' आदि उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं।
                    'छोटा जादूगर' प्रसाद जी की एक ऐसी मनोरम कहानी है, जिसमें आर्थिक "विपन्नता और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए तेरह-चौदह साल के एक लड़के के चरित्र को आदर्शात्मक रूप में उभारा गया है। परिस्थिति की मांग से एक बालक किस प्रकार अपने पाँवों पर खड़ा हो जाता है-उसका यहाँ हृदयग्राही चित्रण है। छोटे जादूगर के रूप में प्रस्तुत बालक के मधुर व्यवहार, चतुराई, क्रिया-कौशल, स्वाभिमान और मातृ-भक्ति से पाठक का मन सहज ही द्रवीभूत हो उठता है।


                                                                 छोटा जादूगर

            कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूंज रहा था । मैं खड़ा था, उस छोटे फुहारे के पास, जहाँ एक लड़का चुपचाप शरबत पीने वालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गम्भीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा थी। मैं उसकी ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ। उसके अभाव में भी सम्पूर्णता थी। मैंने पूछा"क्यों जी, तुमने इसमें क्या देखा ?"
             "मैंने सब देखा। यहाँ चूड़ी फेंकते हैं । खिलौने पर निशाना लगाते हैं। तीर से नम्बर छेदते हैं। मुझे तो खिलौने पर निशाना लगाना अच्छा मालूम हुआ। जादूगर तो बिल्कुल निकम्मा है। उससे अच्छा तो ताश का खेल मैं दिखा सकता हूँ।"-उसने बड़ी प्रगल्भता से कहा। उसकी वाणी में कहीं रुकावट न थी।
      मैंने पूछा-"और उस परदे में क्या है? वहाँ तुम गए थे?"
       "नहीं, वहाँ मैं नहीं जा सकता । टिकट लगता है।"
     मैंने कहा-'तो चला मैं वहाँ पर, तुमको लिवा चलूँ।" मैंने मन ही मन
कहा-'भाई! आज के तुम्ही मित्र रहे।'
      उसने कहा-"वहाँ जाकर क्या कीजिएगा? चलिए निशाना लगाया
- जाए।"
        मैंने उससे सहमत होकर कहा-"तो फिर चलो, पहले शरबत पी लिया जाए।" उसने स्वीकार-सूचक सिर हिला दिया।
         मनुष्यों की भीड़ से जाड़े की संध्या भी वहाँ गर्म हो रही थी। हम दोनों शरबत पीकर नि ।ना लगाने चले। राह में ही उससे पूछा-"तुम्हारे और कौन है?"


"माँ और बाबूजी।"
"उन्होंने तुमको यहाँ आने के लिए मना नहीं किया?"
"बाबूजी जेल में हैं।"
"क्यों?"
"देश के लिए।"- वह गर्व से बोला।
"और तुम्हारी माँ ?"
"वह बीमार है।"
"और तुम तमाशा देख रहे हो?"
         उसके मुँह पर तिरस्कार की हँसी फूट पड़ी। उसने कहा-"तमाशा देखने नहीं, दिखाने निकला हूँ। कुछ पैसे ले जाऊँगा, तो माँ को पथ्य दूंगा। मुझे शरबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती।"
       मैं आश्चर्य से उस तेरह-चौदह वर्ष के लड़के को देखने लगा। "हाँ, मैं सच कहता हूँ बाबूजी। माँजी बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।" 'कहाँ?"
        "जेल में। जब कुछ लोग खेल-तमाशा देखते ही हैं, तो मैं क्यों न दिखाकर माँ की दवा-दारू करूँ और अपना पेट भरूँ।"
        मैंने दीर्घ निःश्वास लिया। चारों ओर बिजली के लट्टू नाच रहे थे। मन
व्यग्र हो उठा। मैंने उससे कहा-"अच्छा चलो, निशाना लगाया जाए।" हम दोनों उस जगह पर पहुँचे, जहाँ खिलौने को गेंद से गिराया जाता था।
मैंने बारह टिकट खरीदकर उस लड़के को दिए।
          वह निकला पक्का निशानेबाज! उसका कोई गेंद खाली नहीं गया। देखने वाले दंग रह गए। उसने बारह खिलौनों को बटोर लिया, लेकिन उठाता कैसे? कुछ मेरे रूमाल में बाँधे, कुछ जेब में रख लिए।
लड़के ने कहा-"बाबूजी, आपको तमाशा दिखाऊँगा। बाहर आइए। मैं
चलता हूँ।" वह नौ-दो ग्यारह हो गया। मैंने मन ही मन कहा-"इतनी जल्दी
आँख बदल गई।"
        मैं घूमकर पान की दुकान पर आ गया। पान खाकर बड़ी देर तक इधरउधर टहलता रहा। झूले के पास लोगों का ऊपर-नीचे आना देखने लगा। अकस्मात् किसी ने ऊपर के हिंडोले से पुकारा-"बाबूजी!"

मैंने पूछा-"कौन?"
 "मैं हूँ छोटा जादूगर।"
    
                                                                            [2]

कलकत्ता के सुरम्य बोटानिकल उद्यान में लाल कमलिनी से भरी हुइस छोटी-सी झील के किनारे घने वृक्षों की छाया में अपनी मण्डली के साथ कैः दिखाई पड़ा। हाथ में चारखाने की खादी का झोला। साफ जाँघिया। और हुआ मैं जलपान कर रहा था। बातें हो रही थीं। इतने में वही छोटा
आधी बाँहों का कुरता। फिर पर मेरा रूमाल सूत की रस्सी से बँधा हुआ था मस्तानी चाल से झूमता हुआ आकर कहने लगा —
       ''बाबूजी नमस्ते। आज कहिए तो खेल दिखाऊँ?"
      "नहीं जी, अभी हम लोग जलपान कर रहे हैं।"
      "फिर इसके बाद क्या गाना-बजाना होगा, बाबूजी?"
      "नहीं जी....तुमको...'' क्रोध से कुछ कहने जा रहा था। श्रीमती
कहा-"दिखलाओ जी, तुम तो अच्छे आए। भला कुछ मन तो बहले।"
चुप हो गया, क्योंकि श्रीमती की वाणी में वह माँ की सी मिठास थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नहीं जा सकता। उसने खेल आरम्भ किया
       उस दिन कार्निवल के सब खिलौने उसके खेल में अपना अभिनय कर लगे। भालू मनाने लगा। बिल्ली रूठने लगी। बन्दर घुड़कने लगा।
        गुड़िया का ब्याह हुआ। गुड्डा वर काना निकला। लड़के की वाचालता ही अभिनय हो रहा था। सब हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।
       मैं सोच रहा था। बालक को आवश्यकता ने कितने शीघ्र चतुर बना दिया की तो संसार है।
सब पत्ते लाल हो ______तब ______काले हो गए। गले की सूत के डोरी टुकड़े-टुकड़े होकर जुड़ गई। लट्टू अपने-आप नाच रहे थे। मैंने कहा— ''अब हो चुका । अपना खेल बटोर लो, हम लोग भी अब जाएँगे।"
श्रीमती ने धीरे से उसे एक रुपया दे दिया। वह उछल उठा। मैंने कहा—"लड़के!"
    "छोटा जादूगर कहिए। यही मेरा नाम है। इसी से मेरी जीविका है।"
     मैं कुछ बोलना ही चाहता था कि श्रीमती ने कहा-"अच्छा तुम इस रुपए से क्या करोगे?"
     "पहले भर पेट पकौड़ी खाऊँगा। फिर एक सूती कम्बल लूँगा।"
      मेरा क्रोध अब लौट आया। मैं अपने पर बहुत क्रुद्ध होकर सोचने लगा'ओह! कितना स्वार्थी हूँ! मैं उसके एक रुपए पाने पर ईर्ष्या करने लगा था न। 
        वह नमस्कार करके चला गया। हम लोग लताकुंज देखने के लिए           चले। उस छोटे-से बनावटी जंगल में संध्या साँय-साँय करने लगी थी। अस्ताचलगामी सूर्य की अन्तिम किरण वृक्षों की पत्तियों से विदाई ले रही थी। एकदम शान्त वातावरण था। हम लोग धीरे-धीरे मोटर से हवड़ा की ओर आ रहे थे।
       रह-रहकर छोटा जादूगर स्मरण होता था। सचमुच वह एक झोंपड़ी के पास कम्बल कांधे पर डाले खड़ा था। मैंने मोटर रोककर उससे पूछा-"तुम यहाँ कहाँ?"
        'मेरी माँ यही है न। अब उसे अस्पताल वालों ने निकाल दिया है।" मैं
उतर गया। उस झोपड़ी में देखा, तो एक स्त्री चिथड़ों से लदी हुई काँप रही थी। छोटे जादूगर ने कम्बल ऊपर से डालकर उसके शरीर से चिपटते हुए कहा-"माँ"
      मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े।
बड़े दिन की छुट्टी बीत चली थी। मुझे अपने आफिस में समय से पहुंचना
था। कलकत्ता से मन ऊब गया था। फिर भी चलते-चलते एक बार उद्यान को देखने की इच्छा हुई। साथ ही साथ जादूगर भी दिखाई पड़ जाता, तो और भी... मैं उस दिन अकेले ही चल पड़ा। जल्द लौट आना था।
       दस बज चुका था। मैंने देखा कि उस निर्मल धूप में सड़क के किनारे एक कपड़े पर छोटे जादूगर का रंगमंच सजा था। मोटर रोककर उतर पड़ा। कई बिल्ली रूठ रही थी। भालू मनाने चला था। ब्याह की तैयारी थी, यह सब होते हुए भी जादूगर की वाणी में वह प्रसन्नता की तरी नहीं थी। जब वह औरों की हँसाने की चेष्टा कर रहा था, तब वह जैसे स्वयं कैंप जाता था। मानो उसके रोएँ रो रहे थे। मैं आश्चर्य से देख रहा था। खेल हो जाने पर पैसा बटोर कर उसने भीड़ में मुझे देखा। वह जैसे क्षणभर के लिए स्फूर्तिमान हो गया। मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए पूछा-"आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं?" 
      "माँ ने कहा है कि आज तुरन्त चले आना। मेरी घड़ी समीप है।"अविचल भाव से उसने कहा। 
       "तब भी तुम खेल दिखलाने चले आए हो?" मैंने कुछ क्रोध से कहा। मनुष्य के सुख-दु:ख का माप अपना ही साधन तो है। उसी के अनुपात से वह तुलना करता है। 
        उसके मुँह पर वही परिचित तिरस्कार की रेखा फूट पड़ी। 
         उसने कहा-"न क्यों आता?"
         और कुछ अधिक कहने में जैसे वह अपमान का अनुभव कर रहा था। क्षणभर में मुझे अपनी भूल मालूम हो गई। उसके झोले को गाड़ी में
फेंककर उसे भी बैठाते हुए मैंने कहा-"जल्दी चलो।" मोटर वाला मेरे
बताए हुए पथ पर चल पड़ा।
           कुछ ही मिनटों में मैं झोंपड़े के पास पहुँचा। जादूगर दौड़कर झोंपड़े में माँमाँ पुकारते हुए घुसा। मैं भी पीछे था, किन्तु स्त्री के मुँह से "बे..." निकल कर रह गया। उसके दुर्बल हाथ उठकर गिर गए। जादूगर उससे लिपटा रो रहा था, मैं स्तब्ध था। उस उज्ज्वल धूप में समग्र संसार जैसे जादू-सा मेरे चारों ओर नृत्य करने लगा।


                   (अभ्यासमाला)

. बोथ एवं विचार
1. सही विकल्प का चयन करो:
(क) बाबू जयशंकर प्रसाद का जन्म हुआ था
(अ) काशी में
(आ) इलाहाबाद में
(इ) पटना में
(ई) जयपुर में

उत्तर: (अ) काशी में  ৷

(ख) जयशंकर प्रसाद जी का साहित्यिक जीवन किस नाम से आरंभ
हुआ था?
(अ) 'विद्याधर' नाम से
(आ) 'कलाधर' नाम से
(इ ) 'ज्ञानधर' नाम से
(ई) 'करुणाधर' नाम से

उत्तर: (आ) 'कलाधर' नाम से ৷

(ग) प्रसाद जी का देहावसान हुआ
(अ) 1935 ई. में
(आ) 1936 ई. में
(इ) 1937 ई. में
(ई) 1938 ई. में

उत्तर:  (इ) 1937 ई. में

(घ)कार्निवाल के मैदान में लड़का चुपचाप किनको देख रहा था?
(अ) चाय पीने वालों को
(आ) मिठाई खाने वालों को
(इ) गाने वालों को
(ई) शरबत पीने वालों को

उत्तर: (ई) शरबत पीने वालों को ৷

(क) लड़के को जादूगर का कौन-सा खेल अच्छा मालूम हुआ?
(अ) खिलौने पर निशाना लगाना
 (आ) चूड़ी फेंकना
(इ) तीर से नम्बर छेदना
(ई) ताश का खेल दिखाना

उत्तर: (अ) खिलौने पर निशाना लगाना  ৷

2. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:
(क) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रथम कहानी का नाम क्या है ?

उत्तर: जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रथम कहानी का नाम 'ग्राम' है।

(ख) प्रसाद जी द्वारा विरचित महाकाव्य का नाम बताओ।

उत्तर:  प्रसाद जी द्वारा विरचित महाकाव्य का नाम 'कामायनी' है।

(ग) लड़का जादूगर को क्या समझता था?

उत्तर: लड़का जादुगर को निकम्मा' समझता था।

(घ) लड़का तमाशा देखने परदे में क्यों नहीं गया था?

उत्तर:  लड़का तमाशा देखने परदे में इसलिए नही गया कि वहाँ टिकट लगता था।

(3) श्रीमान ने कितने टिकट खरीद कर लड़के को दिए थे?

उत्तर: श्रीमान ने बारह टिकट खरीद कर लड़के को दिये थे।

(च) लड़के ने हिंडोले से अपना परिचय किस प्रकार दिया था?

उत्तर: लड़के ने हिंडोल से अपना परिचय छोटा जादूगर नाम से दिया था।

(छ) बालक (छोटे जादूगर) को किसने बहुत ही शीघ्र चतुर बना दिया था?

उत्तर: बालक (छोटे जादूगर) को आवश्यकता ने बहुत ही शीघ्र चतुर बना दिया था । 

(ज) श्रीमान कलकते में किस अवसर पर की छुट्टी बिता रहे थे?

उत्तर: श्रीमान कलकते में बड़े दिन की अवसर पर छुट्टी बिता रहे थे।

(झ) सड़क के किनारे कपड़े पर सजे रंगमंच पर खेल दिखाते समय छोटे जादूगर की वाणी में स्वभावसुलभ प्रसन्नता की तरी क्यों नहीं थी?

उत्तर: सड़क के किनारे कपड़े पर सजे रंगमंच पर खेल दिखाते समय छोटे जादुगर की वाणी में स्वभावसुलभ प्रसन्नता की तरी इसलिए नहीं थी किउसकी माँ ने कहा है कि आज तुरन्त चले आना।मेरी घड़ी समीप है।

(ज) मृत्यु से ठीक पहले छोटे जादूगर की माँ के मुँह से कौन-सा अधूरा शब्द निकला था?

उत्तर: मृत्यु से ठीक पहले छोटे जादुगर की मा के मुँह से “बे.. निकला थी।

3. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में):
(क) बाबू जयशंकर प्रसाद की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय किन क्षेत्रों में मिलता है?

उत्तर: बाबु जयशंकर प्रसाद की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय कविता, नाटक  कहानी, उपन्यास, निबंध और आलोचना के क्षेत्रों में मिलता है । इसके अलावा आप इतिहास एवं पुरातत्व के विद्वान तथा एक गंभीर चिन्टक भी थे।

(ख) श्रीमान ने छोटे जादूगर को पहली भेंट के दौरान किस रूप में देखा था?

उत्तर: श्रीमान ने छोटे जादुगर को पहली भेंट के दौरान देखा था कि एक लड़का चुपचाप शरबत पीने वालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गम्भीर बिबाद के साथ धैर्य की रेखा थी।

(ग) "वहाँ जाकर क्या कीजिएगा?" छोटे जादूगर ने ऐसा कब कहा था?

उत्तर: जब धीमान ने छोटे जादुगर का परदा दिखाने के लिए ले जानाचा तब छोटे जादुगर ने श्रीमान से सवाल किया कि वह जाकर क्या कीजिएगा।


(घ) निशानेबाज के रूप में छोटे जादूगर की कार्य-कुशलता का वर्णन करो।

उत्तर: श्रीमान ने छोटे जादुगर को बारह टिकट खरीदकर दिये हैं। वह निक पक्का निशानबाज । उसका कोई गेंद खाली नहीं गया। देखने वाले दंग रह गा उसने बारह खिलौनों को बटोर लिया।

(ङ) कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान-श्रीमती को छोटा जादूगर किस रूप में मिला था?

उत्तर:  कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान-श्रीमती को अपनी मण्डल के साथ बैठकर जलपान कर रहे रूप में छोटा जादुगर ने मिला।

(च) कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान ने जब छोटे जादूगर को 'लड़के!' कहकर संबोधित किया, तो उत्तर में उसने क्या कहा?

उत्तर: कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान ने जब छोटा जादुगर को 'लड़के' कहकर संबोधित किया तो उत्तर में उसने कहा कि मुझे छोटा जादुगर कहिए।यही मेरा नाम है।

(छ) 'आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं?"- इस प्रश्न के उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या कहा?

उत्तर : “आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नही?” इस प्रश्न के उत्तर में छोटे जादुगर ने कहा- “माँ ने कहा कि आज तुरन्त चले आना। मेरी घड़ी समीप है।"

4. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में)
(क) प्रसाद जी की कहानियों की विशेषताओं का उल्लेख करो।

उत्तर: कहानीकार के रुप में प्रसाद जी भाववादी धारा के प्रवर्तक है। आप को अधिकांश कहानियों चारित्रिक उदारता, प्रेम, करुणा, त्याग, बलिदान, अतीत के प्रति मोह से युक्त भावमूलक आदर्श की अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने अपने समकाली समाज की आर्थिक बिपन्नता, निरीहता, अन्याय और शोषण को भी कुछेक कहानियो में चित्रित किया है।

(ख) "क्यों जी , तुमने इसमें क्या देखा? - इस प्रश्न का उत्तर छोटे जादूगर ने किस प्रकार दिया था ?

उत्तर: लेखक ने छोटे जादुगर से प्रश्न किया कि इस तमाशा में तुमने क्या देखा? तब छोटा जादुगर ने उत्तर दिया कि वह सब देखा। यहाँ चूड़ी फेंकते है। खिलौने पर निशाना लगाते हैं, तीर से नम्बर छेदते हैं। मुझे तो खिलौने पर
निशाना लगाना अच्छा मालूम हुआ, जादुगर तो बिलकुल निकम्मा है, उससे अच्छा तो ताश का खेल मै दिखा सकता हुँ।

(ग) अपने माँ-बाप से संबंधित प्रश्नों के उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या क्या कहा था?

उत्तर: अपने माँ-बाप से संबंधित प्रश्नों के उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या क्या कहा - माँ  बीमार हैं।  बाबूजी  देश के लिए जेल में हैं।

(घ) श्रीमान ने तेरह-चौदह वर्ष के छोटे जादूगर को किसलिए आश्चर्य से देखा था?

उत्तर: जब श्रीमान ने छोटे जादुगर को तिरस्कार भरी बाते सुनाई, तब छोटे जादुगर ने कहा कि तमाशा देखने नहीं, दिखाने निकला हुँ। कुछ पैसे ले जाऊँगा, तो माँ को प्रथ्य दूंगा। मुझे शरबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होता। ये बाते सुनकर श्रीमान ने तेरहचौदह वर्ष के छोटे जादुगर को आश्चर्य से देखा था।

(ङ) श्रीमती के आग्रह पर छोटे जादूगर ने किस प्रकार अपना खेल दिखाया?

उत्तर: श्रीमान के आग्रह पर छोटे जादुगर ने अपना खेल दिखाना शुरु किया। उसदिन कार्णिवल के सब खिलौने उसके खेल में अपना अभिनय करने लगे। भालू मनाने लगा। बिल्ली रूठने लगी। बन्दर घुड़कने लगा। गुड़िया का ब्याह हुआ, गुड्डा बरकाना निकला।ताश के सब पत्ते लाल हो गए। फिर सब काले हो गए। गले की सूत की डोरी टुकडे टुकड़े होकर जुड़ गई। लट्ट अपने आप नाच रहे।

(च) हवड़ा की ओर आते समय छोटे जादूगर और उसकी माँ के साथ श्रीमान की भेंट किस प्रकार हुई थी?

उत्तर: हावड़ा की ओर आते समय श्रीमान के मन में छोटे जादुगर स्मरण होता या। सचमुच बह एक झोपड़ी के पास कम्बल कांधे पर डाले खड़ा था। श्रीमान ने मोटर रोककर उतर गया। उस झोपड़ी में देखा, तो एक स्त्री चिछड़ो से लदी हुई कॉप रही थी। इस प्रकार छोटे जादुकर और उसकी माँ के साथ भेंट हुई थी।

(छ) सड़क के किनारे कपड़े पर सजे रंगमंच पर छोटा जादूगर किस मन:स्थिति में और किस प्रकार खेल दिखा रहा था?

उत्तर: सड़क के किनारे पर सजे रंगमंच परछोटा जादुगर अपनी माँ की बातें याद कर खेल दिखा रहा था। जब वह औरों को हंसाने की चेष्टा कर रहा था, तब वह जैसे स्वयं कंप जाता था। मानों उसके रोएँ रोरहे थे। क्योंकि मां की बड़ी समीप था।

(ज) छोटे जादूगर और उसीक माँ के साथ श्रीमान की अंतिम भेंट का अपने शब्दों में वर्णन करो।

उत्तर: श्रीमान ने छोटे जादुगर को लेकर झोंपड़े के पास आया था। जादुगर दौड़कर झोपड़े में मा-मा पुकारते हुए घुसा। श्रीमान भी पीछे था। किन्तु स्त्री के निकलकर रह गया। उसके दुर्बल हाथ उठकर गिर गए। जादुगर उससे लिपता रो रहा था। श्रीमान स्टब्ध था। श्रीमान को समग्र संसार जादु सा लगने लगा।

5.सम्यक उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में):
(क) बाबू जयशंकर प्रसाद को साहित्यिक देन का उल्लेख करो।

उत्तर:  बाबु जयशंकर प्रसाद जी अपनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आप कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध और आलोचना के क्षेत्रों में अमर लेखनी चलाकर आधुनिक कालीन हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। आप की साहित्यिक देन इस प्रकार है। काव्य रचनाएँ उर्वशी, बनमिलन, प्रेमराज्य, आयोद्धा का उद्धार, शोकोच्छवास, बभ्रुवान, कानन कुसुम, प्रेमपथिक, करुणालय, महाराणा का महत्व, झारना, आँसू (खंडकाव्य) लहर और कामायनी (महाकाव्य)। उनके द्वारा विरचित नाटक हैं - सज्जन, स्कंदगुप्त, एक घुट, कल्याणी-परिणय, प्रायश्चित, राजश्री, अजात शत्रु, जनमेजय का नाग यज्ञ, कामना और स्वामिनी। प्रसाद जी ने तीन उपन्यास की भी रचना की है - कंकाल, तितली ध्रुवऔर इरावती। प्रसाद जी द्वारा रचित निबंधों का सग्रह है तथा अन्य निबंध। काव्य और कला प्रसाद जी ने लगभग सत्तर कहानियाँ हिन्दी की उपहार की हैं। ये कहानियाँ छाया, प्रतिध्वनि, आकाशद्वीप, आंधी आदि संग्रही में संकलित है।

(ख) छोटे जादूगर के मधुर व्यवहार एवं स्वाभिमान पर प्रकाश डालो।

उत्तर: छोटे जादुगर के व्यवहार एवं स्वाभिमान को हम इस प्रकार प्रकाश कर सकते है – कार्णिलस के मैदान में वह चुपचाप शरवत पीने वालो को देख रहा था। जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गम्भीर विवाद के साथ धैर्य की रेखा थी। उसके अभाव में भी सम्पूर्णता थी। श्रीमान ने पुछा कि 'तुमने इसमें क्या देखा? तब वह तुरन्त जवाब दिया है कि वह सब देखा- चूड़ी फेंकना, खिलौने पर निशाना लगाने, तीर से नम्बर छेदना आदि। वह कहा कि जादुगर बिल्कुल निकम्मा है। उससे अच्छा तो ताश का खेल वह दिखा सकता है। इससे उसका
स्वाभिमान का पता सलता है। 

(ग) छोटे जादूगर की चतुराई और कार्य-कुशलता का वर्णन करो।

उत्तर: कलकत्ता के सुरम्य बोटानिकल उद्यान में श्रीमान को छोटे जादुगर साथ भेंट हुआ। श्रीमान को देखते ही छोटा जादुगर ने नमस्कार किया और खेल देखने के लिए अनुरोध किया। श्रीमान देखना नहीं चाहा। लेकिन श्रीमती आग्रह से खेल दिखाना शुरु किया। कार्णिवल के सब खिलौने उसके खेल में अपना अभिनय करने लगें। भान मनाने लगा। बिल्ली रुठने लगी। बन्दर घुड़कने लगा । गुड़िया का व्याह हुआ। गुहा वर काना निकला।ताश के सब पत्ते लाल हो गए। फिर सब काले हो गए।गले की सूत की डोरी टुकड़े-टुकड़े होकर जुड़ गए। लट्ठ अपने आप नाच रहे थे। छोटा जादुगर की चतुराई और कार्य कुशलता ने औरो को इसी तरह हँसा रहे हैं।


(घ) छोटे जादूगर के देश-प्रेम और मातृ-भक्ति का परिचय दो।

उत्तर: छोटे जादुगर के देश-प्रेम पता तब चला, जब श्रीमान ने पूछा- “तुम्हारा बाबुजी?” छोटे जादुगर गर्व से बोला- “बाबुजी देश के लिए जेल में है।माँ जी बीमार है। इसलिए मैं जेल नहीं गया।"
           छोटे जादुगर का हृदय मातृभक्ति से भी भरपूर है। जब श्रीमान ने उससे कहा था कि माँ बीमार है और तुम तमाशा देख रहे हो। उसके मुँह पर तिरस्कार की हँसी फूट पड़ी। उससे कहा -“तमाशा देखने नहीं, दिखाने
निकला हुँ। कुछ बैसे ले जाऊगा, तो माँ को पथ्य दूंगा। मुझे शबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया हो, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती।"
           दुसरी ओर जेल न जाने के कारण बताते हुए कहा - “जब कुछ लोग खेल-तमाशा देखते ही है, तो मैं क्यों न दिखाकर माँ की दवा दारु करु और अपना पेट भरु?” जब श्रीमती उसे पूछा कि रुपए से क्या करोगे, तब छोटे
जादुगर ने जवाब दिया कि पहले भर पेट पकौड़ी खाऊँगा। फिर माँ के लिए एक सूती कम्बल लूँगा।
             इससे पता चलता है कि छोटा जादुगर का हृदय देश प्रेम और मातृभक्ति से भरपूर है।

(ङ) छोटे जादूगर की कहानी से तुम्हें कौन-सी प्रेरणा मिलती है ?

उत्तर: छोटे जादुगर कहानी से हमें प्रेरणा मिलते हैं कि आवश्यकता ने सबको शीघ्र चतुर बना देते। इसी से सब अपने पांवों पर खड़ा हो जाता है। उसका यहाँ हृदय ग्राही चित्रण हुआ है। छोटे जादुगर के रुप में प्रस्तुत बालक के मधुर व्यवहार, सतुराई, क्रिया-कौशल सवाभिमान और मातृभक्ति से हमारे मन सहज ही द्रवीभूत हो उठा है।

6. सप्रसंग व्याख्या करो:
(क) “मैं उसकी ओर न जाने क्यों आकर्षित हुआ। उसके अभाव में भी संपूर्णता थी।" श्रीमती की वाणी में वह माँ की सी मिठास थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नहीं जा सकता।"

उत्तर:  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक के अंतर्गत जयशंकर है। प्रसाद द्वारा लिखित कहानी छोटा जादुगर' शार्षक पाठ से लिया गया
 यहाँ प्रसाद जीने एक लड़का के बारे में कहा है, जो कार्णिवल के मैदान में चुपचाप शरबत पीने वालों को देख रहा था।
       प्रसाद जी कहना चाहता है कि कार्णिवल के मैदान में जो लड़का मिला बहे चुपचाप शरबत पीने वालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर अए मोटी सी सूत की रस्सा पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुंह पर गम्भीर विवाद के साथ धैर्य की रेखा था। वह अभाव ग्रस्थ था। फिर भी लेखक न जाने उसकी ओर क्यों आकर्षित हुआ।
 यहाँ लेखक का सहृदयता प्रकाश हुआ है। साथ ही एक गरीब के चरित्र उभार गया है।

(ख)“श्रीमती की वाणी में वह माँ की जेसी मिठास थी, जिसके सामने किसी भी लड़के को रोका नही जा सकता।"

उत्तरः
प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक के अंतर्गत कहानीकार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'छोटा जादुगर शार्षक कहानी से लिया गया है।
 यहाँ लेखक को कलकत्ता के सुरम्य बोटानिकल उद्यान के एक झील के किनारे वृक्षों की छाया में जलपान करते वक्त छोटे जादुगर को दिखाई पड़ा। वह मस्तानी चाल से झुलता हुआ आकर लेखक को खेल दिखाना चाहा।
लेखक ने इनकार किया। लेकिन श्रीमती ने खेल देखना आग्रह किया।
          छोटा जादुगर अपनी जीविका का तथा घर की आर्थिक दशा उसकी मा की बीमार के कारण मन में विषाद का बोज लेकर इधर-उधर घूम रहे है। कैसे माँ को दवा-दारु करें और अपना पेट भरें। इसी चिंता से घूमते घूमते
वहाँ आ पहुँचे जहाँ लेखक तथा श्रीमती जलपान कर रहे थे। जब श्रीमतीने छोटे जादुगर से खेल देखना आग्रह किया। लेखक चुप हो गया, कारण श्रीमती की वाणी में वह माँ की जेसी मिठास थी, जिसकी वाणी सुनने के लिए छोटा जादुगर कुछ कमाने के लिए घूमता-फिरता रहा है। क्यों कि माँ सिर्फ माँ ही है।
        यहाँ लेखक माँ की महत्व के बारे मे प्रकाश किया है ৷ 


भाषा एवं व्याकरण-ज्ञान

1. सरल, मिश्र और संयुक्त वाक्यों को पहचानो :
(क) कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी।

उत्तर: सरल  वाक्य ৷

(ख) माँजी बीमार है, इसलिए मैं नहीं गया।

उत्तर: संयुक्त वाक्य ৷

(ग) मैं घूमकर पान की दुकान पर आ गया।

उत्तर: सरल  वाक्य ৷

(घ) माँ ने कहा है कि आज तुरंत चले आना।

उत्तर: मिश्र वाक्य  ৷

(ङ) मैं भी पीछे था, किंतु स्त्री मुँह से 'बे...' निकलकर रह गया।

उत्तर: संयुक्त वाक्य ৷

2. अर्थ लिखकर निम्नांकित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करो:
नौ दो ग्यारह होना, आँखें बदल जाना, घड़ी समीप होना, दंग रह जाना, श्रीगणेश होना, अपने पाँवों पर खड़ा होना, अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना

उत्तर: नौ दो ग्यारह होना(भाग जाना ) :  चोर चोरी करके नौ दो ग्यारह हो गया।
 आँखें बदल जाना(परिबर्तन  होना ): लड़के भाग-जाने के कारण श्रीमान ने मन ही मन कहा'इतनी जलदी जॉब बदल गई।
 घड़ी समीप होना(मृत्यु का समय पास आना): माँ की घड़ी समीप होने के कारण छोटा जादुगर घर वापस आया।
दंग रह जाना(आचरित होना ): लड़का निकला पक्का निशानेबाज। उसका कोई गेंद खाली नहीं गया। देखने वाले दंग रह गए।
श्रीगणेश होना(कार्य आरंभ करना ): आज मेरा नया मकान का बीगणेश हो गया।
 अपने पाँवों पर खड़ा होना(स्ववलंबी  होना ):  जब मैं अपने पाँवों पर खड़ा हो जाऊ, तब मैं एक नया मकान
बनाऊँगा।
 अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना(खुद को नुकसान करना ):  वह नौकरी से पहले शादी करके अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारी है।

3. निम्नलिखित शब्दों के लिंग-परिवर्तन करो:
रस्सी, जादूगर, श्रीमान, गुड़िया, वर, स्त्री, नायक, माली

उत्तर: रस्सी= रस्सियाँ
जादूगर= जादूगरनी
श्रीमान= श्रीमती
गुड़िया= गुड्डा
 वर= कइना
 स्त्री=  पुरुष
नायक= नायिका
 माली= मालिनी


4. निम्नांकित शब्दों के लिंग निर्धारित करो:
रुकावट, हँसी, शरबत, वाणी, भीड़, तिरस्कार, निशाना, झील

उत्तर:  रुकावट= स्त्रीलिंग
 हँसी = स्त्रीलिंग
शरबत = पुलिंग
वाणी = स्त्रीलिंग
 भीड़ = स्त्रीलिंग
तिरस्कार = पुलिंग
 निशाना = पुलिंग
झील = स्त्रीलिंग


5. निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तन करो:
खिलौना, आँख, दुकान, छात्रा, बिल्ली, साधु, कहानी

उत्तर:  खिलौना = खिलौने
आँख = आंखे
 दुकान = दुकाने
छात्रा = छात्राऐँ
बिल्ली = बिल्लियॉ
 साधु  =  साधुऐ
कहानी = कहानियाँ।







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