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Niv Ki Int -Class 10-Aalok Bhag 2 ( नींव की ईंट - रामवृक्ष बेनीपुरी -Class 10)

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 Niv Ki Int -Class 10-Aalok Bhag 2 ( नींव की ईंट - रामवृक्ष बेनीपुरी -Class 10)


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रामवृक्ष बेनीपुरी ( 1902–1968) यशस्वी ललित निबंधकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी आधुनिक हिंदी साहित्य की अमर विभूतियों में अन्यतम हैं। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । आपने गद्य-लेखक, शैलीकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सेवी और हिंदी प्रेमी के रूप में अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्र-निर्माण, समाज-संगठन और मानवता के जयगान को लक्ष्य मानकर बेनीपुरी जी ने ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि विविध गद्य-विधाओं में जो महान रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे आज की युवा पीढ़ी के लिए भी अमोघ प्रेरणा की स्त्रोत हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म 1902 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गाँव में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता के देहावसान हो जाने के कारण आपका पालन पोषण ननिहाल में हुआ । मैट्रिक की परीक्षा पास करने से पहले 1920 ई. में वे महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में आपको 1930 ई. से 1942 ई. तक का समय जेल- यात्रा में ही व्यतीत करना पड़ा। इसी बीच आप पत्रकारिता एवं साहित्य- सर्जना में भी जुड़े रहे। 'बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन' को खड़ा करने में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वाधीनता-प्राप्ति के पश्चात् आपने साहित्य-साधना के साथ-साथ देश और समाज के नवनिर्माण कार्य में अपने को जोड़े रखा। 1968 ई. में आपका स्वर्गवास हुआ। बेनीपुरी जी पत्रकारिता जगत से साहित्य-साधना के संसार में आए। छोटी उम्र से ही आप पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। आगे चलकर आपने 'तरुण भारत', 'किसान मित्र', 'बालक', 'युवक', 'कैदी', 'कर्मवीर', 'जनता', 'तूफान', 'हिमालय' और 'नई धारा' नामक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। आपकी साहित्यिक रचनाओं की संख्या लगभग सौ है, जिनमें से अधिक रचनाएँ 'बेनीपुरी ग्रंथावली' नाम से प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कृतियों में से 'गेहूँ और गुलाब' (निबंध और रेखाचित्र), 'वंदे वाणी विनायकौ' (ललित गद्य), 'पतितों के देश में' (उपन्यास), 'चिता के फूल' (कहानी संग्रह), 'माटी की मूरतें' (रेखाचित्र), 'अंबपाली' (नाटक) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

                               रामवृक्ष बेनीपुरी जी एक सशक्त गद्यकार हैं । उनकी भाषा-शैली जीवंत, अलंकारयुक्त, प्रवाहमयी और ओज गुण से परिपूर्ण है। रेखाचित्र, संस्मरण और ललित निबंधों की रचना में आपको विशेष सफलता मिली है। मानव सभ्यता का लेखा-जोखा लेने, भारतीय समाज के अतीत, वर्तमान और भविष्य में झाँकने और प्रतीकार्थ भरने की विशेषताओं के कारण बेनीपुरी जी के ललित निबंध बहुचर्चित रहे हैं। 'नींव की ईंट' बेनीपुरी जी के रोचक एवं प्रेरक ललित निबंधों में अन्यतम है। 'नींव की ईंट' का प्रतीकार्थ है- समाज का अनाम शहीद, जो बिना किसी यश-लोभ के समाज के नव-निर्माण हेतु आत्म-बलिदान के लिए प्रस्तुत है। 'सुंदर इमारत' का आशय है- नया सुंदर समाज। 'कंगूरे की ईंट' का प्रतीकार्थ है- समाज का यश-लोभी सेवक, जो प्रसिद्धि प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है। निबंधकार के अनुसार भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सैनिकगण नींव की ईट की तरह थे, जबकि स्वतंत्र भारत के शासकगण कंगूरे की ईंट निकले। भारतवर्ष के सात लाख गाँवों, हजारों शहरों और सैकड़ों कारखानों के नव-निर्माण हेतु नींव की ईंट बनने के लिए तैयार लोगों की जरूरत है। परंतु विडंबना यह है कि आज कंगूरे की ईंट बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मरची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है। इस रूप में भारतीय समाज का नव-निर्माण संभव नहीं । इसलिए निबंधकार ने देश के नौजवानों से आह्वान किया है कि वे नींव की ईंट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और भारतीय समाज के नव-निर्माण में चुपचाप अपने को खपा दें।

                                                   नींव की ईंट


नींव की ईंट वह जो चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत हैं, वह किस पर टिकी है ? इसके कंगूरों को आप देखा करते हैं, क्या कभी आपने इसकी नींव की ओर भी ध्यान दिया है ? दुनिया चकमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है उस पर कितने लोगों का ध्यान जाता है ? ठोस' सत्य' सदा 'शिवम्' होता ही है, किंतु वह हमेशा ही 'सुंदरम्' भी हो यह आवश्यक नहीं। सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं इसीलिए सत्य सेभी भागते हैं। नहीं तो, हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते। वह ईंट धन्य है, जो कट-छँटकर कंगूरे पर चढ़ती है और बरबस लोक-लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है। किंतु, धन्य है वह ईंट, जो जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी! क्योंकि इसी पहली ईंट पर उसकी मजबूती और पुख्तेपन पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर करती है। उस ईंट को हिला दीजिए, कंगूरा बेतहाशा जमीन पर आ रहेगा। कंगूरे के गीत गानेवाले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ । वह ईंट जो जमीन में इसलिए गड़ गई कि दुनिया को इमारत मिले, कंगूरा मिले! वह ईंट, जो सब ईंटों से ज्यादा पक्की थी, जो ऊपर लगी होती तो कंपूरे की शोभा सौ गुनी कर देती! 

                  किंतु, जिसने देखा, इमारत की पायदारी उसकी नींव पर मुनहसिर होती है, इसलिए उसने अपने को नींव में अर्पित किया। वह ईंट, जिसने अपने को सात हाथ जमीन के अंदर इसलिए गाड़ दिया कि इमारत जमीन के सौ हाथ ऊपर तक जा सके। वह ईंट जिसने अपने लिए अंधकूप इसलिए कबूल किया कि ऊपर के उसके साथियों को स्वच्छ हवा मिलती रहे, सुनहली रोशनी मिलती रहे। वह ईंट, जिसने अपना अस्तित्व इसलिए विलीन कर दिया कि संसार एक सुंदर सृष्टि देखे। सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का। सुंदर इमारत बने, इसलिए कुछ पक्की-पक्की लाल ईंटों को चुपचाप नींव में जाना है । सुंदर समाज बने, इसलिए कुछ तपे-तपाए लोगों को मौन-मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है। शहादत और मौन-मूक! जिस शहादत को शोहरत मिली, जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह इमारत का कंगूरा है-मंदिर का कलश है। हाँ, शहादत और मौन-मूक! समाज की आधारशिला यही होती है। ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया, आप कह लीजिए। किंतु मेरी समझ से ईसाई धर्म को अमर बनाया उन लोगों ने, जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया। उनमें से कितने जिंदा जलाए गए, कितने सूली पर जढ़ाए गए, कितने वन-वन की खाक छानते जंगली जानवरों के शिकार हुए, कितने उससे भी भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए। उनके नाम शायद ही कहीं लिखे गए हों-उनकी चर्चा शायद ही कहीं होती हो किंतु ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य-प्रताप से फल-फूल रहा है । वे नींव की ईंट थे, गिरजाघर के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं।

                आज हमारा देश आजाद हुआ सिर्फ उनके बलिदानों के कारण नहीं, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है। देश का शायद कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हों, जिनकी हड्डियों के दान ने ही विदेशी वृत्रासुर का नाश किया। हम जिसे देख नहीं सकें, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारणा ! ढूँढ़ने से ही सत्य मिलता है। हमारा काम है, धर्म है, ऐसी नींव की ईंटों की ओर ध्यान देना। की सदियों के बाद नए समाज सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाया है। इस नए समाज के निर्माण के लिए भी हमें नींव की ईंट चाहिए। अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है! सात लाख गाँवों का नव-निर्माण! हजारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण! कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता। जरूरत है ऐसे नौजवानों की, जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें। जो एक नई प्रेरणा से अनुप्राणित हों, एक नई चेतना से अभिभूत, जो शाबाशियों से दूर हों दलबंदियों से अलग। जिनमें कंगूरा बनने की कामना न हो, कलश कहलाने की जिनमें वासना न हो । सभी कामनाओं से दूर सभी वासनाओं से दूर। उदय के लिए आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है । हमारी नींव की ईंटें किधर हैं? देश के नौजवानों को यह चुनौती है !


अभ्यासमाला : 

 * बोध एवं विचार पूर्ण वाक्य में उत्तर दो : 

(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहाँ हुआ था?

उत्तरः रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गाँव हुआ था।

 (ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएँ क्यों करनी पड़ी थी?

उत्तरः  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रुप में हिंस्सा लेने के अपराध में बेनीपूरी जी जेल को यात्रा करनी पड़ी था।

 (ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था ?

उत्तरः बेनीपुरी जी का स्वर्गवास सन 1968 ई. में हुआ था।

 (घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुत: किस पर टिकी होती है?

उत्तरः  चमकीली, सुंदर, सुघड़-इमारत वस्तुतः नीवं की ईट पर टिकी होती है।

 (ङ) दुनिया का ध्यान सामान्यत: किस पर जाता है?

उत्तरः दुनिया का ध्यान सामान्यतः कंगुरे की ईट पर है। 

(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा?

उत्तरः नीवं की ईट को हिला देने का परिणाम यह हीगा कि कंगुरा बेतहाशा जमीन पर आ रहेगा। 

 (छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है?

उत्तरः सुन्दर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है।  

(ज) लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश वस्तुत: किनकी शहादत से चमकते हैं?

उत्तरः लेखक के अनुसार गिरजा घरों के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं। जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रसार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया।

 (झ) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है?

उत्तरः आज कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है। 

(ञ) पठित निबंध में 'सुंदर इमारत' का आशय क्या है?

उत्तरः पठित निबंध में सुंदर इमारत का आशय है - नया सुंदर समाज। 

2. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में) :

 (क) मनुष्य सत्य से क्यों भागता है?

उत्तरः  सत्य कठोर होता है। कठोरता और भट्टापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं और भद्देपन से मुख मोड़ते हैं। इसलिए मनुष्य सत्य से भी भागते हैं। 

 (ख) लेखक के अनुसार कौन-सी ईंट अधिक धन्य है ?

उत्तरः लेखक के अनुसार वह ईट अधिक धन्य है - जो जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और हमारत की पहली ईट बनी। 

 (ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है?

उत्तरः  नीव की ईट की भूमिका यह है कि समाज का अनाम शहीद, जो बिना विसी यश-लोभ के समाज के नव निर्माण हेतु आत्म बलिदान के लिए प्रस्तुत है ।  

(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।

उत्तरः कंगुरे की ईट की भूमिका यह है। प्रसिद्धि प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्बायेवश समाज का काम करना चाहता है। 

 (ङ) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?

उत्तरः  शहादत का लाल सेहरा कृछ मौन-मूक लोगों को पहनना पड़ता है, ताकि एक सुंदर समाज बने। 

 (च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे ?

उत्तरः लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन लोगों ने अमर बनाया, जिन्होंने उस अर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया। 

(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?

उत्तरः आज देश के नौजवानों के समक्ष यह चुनौती है कि सात लाख गाँवों कानी नव-निर्माण, हजारो शहरों और कारखानों का नव-निर्माण, कोई शासक इसे सम्भव नही कर सकता। इसलिए इस काम में नौजवनों ने अपने को चुपचाप खपा दों। 

3. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में ) :

 (क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता ?

उत्तरः मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरा को देखने का कारण यह है कि दृनिया चकमक की ओर नजर डालते हैं। लोग ऊपर का आवरण देखती है, आवरण क नीसे जो ठोस सत्य है उस पर ध्यान नहीं देते। इसलिए नीवं की ओर उतका ध्यान नही जाता। 

(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्या आह्वान किया है?

उत्तरः  लेखक ने कंगुरे के गीत के बजाय नीवं के गीत गाने के लिए इसलिए आहवान किया है कि नीवं की मजबूती और पुख्तेपर पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर करती है। यदि नीवं की ईट को हिला दिया जाय तो कंगुरा बोतहाशा जमीन पर आ जायेगा ৷ 

(ग) सामान्यत: लोग कंगूरे की इंट बनना तो पर्संद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते ?

उत्तरः लोग नीवं की ईट बनना नहीं चाहने का कारण यह है कि नीव्ं की ईंट अर्थात मौन बलिदान सोस और भह़ा होता है। सब लोग भदेपन से भागते हैं। इसलिए वे लोग नींव की ईट बनने से भी मागते हैं। यश-लोभी लोग केवल  प्रसि्धि प्रशंसा अथवा अन्यकिसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहते हैं। 

(घ) लेखक ईसाई धर्म की अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहता है और क्यों ?

उत्तरः लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन्हें देना चाहता है, जिन्दीत जस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया। कारण उन में से कितसे जिंदा जलाए गए, कितने सूली पर चढ़ाए गए, कितने वन-बन भटककर  जंगली  जानवरों के शिकार हुए तथा भयानक भूख प्यास के शिकार हुए।

(ङ) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ?

उत्तरः  हमारा देश उनके बलिदानों के कारण आजाद नहीं हुआ, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है। देश का शायद कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हो, जिनकी हद्दियों के दान ने ही विदेशी वृत्तासुर का नाश किया। 

 (च) दधीचि मुनि ने किसलिए और किस प्रकार अपना बलिदान किया था ?

उत्तरः  पौरानिक जमाने की बात है। स्वर्गलोक में देवता और असूरों के बीच लड़ाई चल रहे थे। देवतागण हर बार हार खाना पड़ा। आखिर इन्द्र का पता चला कि दधीचि मुनि की हट्दी से निमित बज्र द्वारा ही असूुरों का बध किये जा सकते हैं। देवतागण दधीचि मुनि के पास आया और लड़ाई के बारेमें बता दिया। देवतागणों के मंगल के लिए दधीचि अपना बलिदान किया था ।

 (छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है?

उत्तरः भारत के नव-निर्माण के  बारे में लेखक ने कहा - इस नए समाज के  निर्माण के लिए भी हमें नीव की ईट चाहिए। अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों  होडा -होड़ी मची है, नीवे की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है। 
(ज) 'नींव की ईंट' शीर्षक निरबंध का संदेश क्या है?

उत्तरः  नीवं की ईट शीर्षक निबंध का यह संदेश है - आज कंगूरे की ईट बनने के लिए चारों ओर होड़-होड़ी मची है, नीवं की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है। इस रुप में भारतीय समाज का नव-निर्माण संभव नही। इसलिए लेखक ने देश के नौजवनों से आहवान किया है कि वे नीवं की ईट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और भारतीय समाज के नव-निर्माण में चूपचाप अपने को खपा दें।

 4 . सम्यक् उत्तर दो ( लगभग 100 शब्दों में)  

(क) 'नींव की ईंट' का प्रतीकार्थ स्पष्ट करो।

उत्तरः नीव की ईट का प्रतीकार्थ है- समाज का अनाम शहीद जो बिना किसी यश-लोग के समाज के नव-निर्माण हेतु आत्म-बलिदान के लिए प्रस्तुत है। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सैनिकगण नीव की ईट की तरह थे। हमारा देश उनके बलिदान के कारण आजाद हुआ। आज नए समाज निर्माण के लिए हमें नीव की ईट चाहिए।पर अफसोस है कि कंगूरा बनने के लिए चारों ही होड़ा-होड़ी मची है, नीव की ईट बनने की कामना लुप्त हो रही है। अर्थात देश की प्रगति के लिए काम करनेवालों की संख्या घट रहा है और अपना स्वार्थ के लिए काम करने वालों की संख्या दिन-व-दिन बढ़ रहा है।

(ख) 'कंगूरे की इंट' के प्रतीकार्थ पर सम्यक् प्रकाश डालो।

उत्तरः कंगुरे की ईट के प्रतीकार्थ है: प्रशंसा अथवा अन्य किसी स्वार्थवश समाज का काम करना चाहता है। स्वतंत्र - समाज का यथ लोभी सेवक, जो प्रसिद्धि भारत के शासकगण कंगूरे की ईट साबित हुआ। क्योंकि वे अपना स्वार्थ सिद्धि के लिए अपना आसन रक्षा हेतु तथा अपना मकसद सिद्धि हेतु काम किये रहे। उनको दृष्टि में क्या देश, क्या राज्य क्या शहर या गाँव ध्यान देने का अवसर नहीं केवल दिखाने के लिए ही इधर-उधर दौड़ता। ताकि लोगें की दृष्टि में कंगुरे की ईट बन सके। 

(ग) 'हाँ, शहादत और मौन-मूक! समाज की आधारशिला यही होती है'- का आशय बताओ।

उत्तरः  हा, शहादत और मौन-मूक। समाज की आधारशिला कहा गया है। क्यों कि इसी से समाज का निर्माण होता है। ईसाई लोगों की शहदूत ने ईसाई धर्म को अमर बनाया। उन लोगों ने धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया। उनके नाम शायद ही कही लिखे गए हों- उनकी चर्चा शायद ही कही होती हो। किंतु ईसाई धर्म उन्ही के पुण्य-प्रताप से फल-फूल रहा है। वैसे ही हमारा देश आजाद हुआ उन सैनिकगण के बलिदानों के कारण, जिनका नाम इतिहास में नही है। आज भारतवर्ष के सात लाख गाँव, हजारों शहरों और सैकड़ो कारखानों के नव-निर्माण हुआ है। इसे कोई शासक अकले नही किया। इस के पीसे कई नौजवनों की मौन आत्म बलिदान हैं। अतः यह स्पष्ट है कि शहादत और मौन- मूक समाज निर्माण की आधारशिला है। 

5. सप्रसंग व्याख्या करो: 

(क) "हम कटोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी भागते हैं।"

उत्तरः  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक के अंतर्गत रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित 'नींव की ईट' शीर्षक रोचक एवं प्रेरक ललित निबंध्ध से लिया गया है।
  यहाँ लेखक बेनीपूरी जी सत्य का कठोरता और उसके साथ भद्दपन का सम्बन्ध उल्लेख किया है।
  बेनीपुरी के अनुसार सत्य कठोर होता है। प्राय लोग सत्य की कठोरता से भागते हैं। क्योकि आज के जमाने में सत्य को अपनाना बडी मुशकिल होता है। इसीसे लोगो के मन में भहापन का जन्म लेता हैं। इसीलिए  लोग भट्टेपन से मुख मोड़ लेते, इस तरह सत्य से भी भागते हैं।

 (ख) "सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का ।"

उत्तरः  प्रस्तृत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक के अंतर्गत रामवृक्ष बेनीपूरी द्वारा लिखित 'नींव की ईट' से लिया गया है।
 यहाँ लेखक बेनीपूरी जी नींव की ईट के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि कोई सृन्दर सृष्टि के लिए हमे हमेशा बलिदान करना पड़ता है। यह बलिदान चाहे ईट की हो या व्यक्ति की।
यहाँ लेखक नीव की ईट के बारे में उल्लेख करते हुए कहा कि सुन्दर सृष्टि यानि इमारत का कंगूरा बनने में कृछ बलिदान करना पड़ता है  ईट हो या व्यक्ति। सुन्दर इमारत बनने में नीव की ईट को सात हाथ जमीन के अंदर गाड़ दिया जाता है ताकि इमारत जमीनं के सौ हाथ ऊपर तक जा सके। इसी तरह समाज के सुंदर सृष्टि के लिए भी कई लोगों को अनाम उत्सर्ग करना पड़ा। 

( ग )  अफसोस, कंगूण बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट वनने की कामना लुप्त हो रही है!"

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठय पूस्तक आलोक के अंतर्गत रामबृक्ष बनापुरी ब्रारा लिखित रोचक एवं प्रेरक ललित निवंध 'नीव की ईंट' से लिया गया है ।
 लेखक बेनीपूरी जी ने भारतवर्ष की आजादी के बाद आसन  इठियाने के लिए शासकगण के बीच जो होडा-होडी मची थी, उसी के बारेमें यहाँ उल्लेख किया है।
 आजादी के बाद भारती समाज का नव-निर्माण के लिए  तथा प्रसिद्धि प्रशंसा अथवा अन्य किसी सर्थवश समाज का काम करने के लिए शासकगण के बीच होड़ा-होड़ी मची। उनका मकसद एक ही है - कंगूरा बनने का। उनके होड़ा-होड़ी मचा देखकर निबंधकार अपनी खेद प्रकट किया कि। अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नीवं बनने की। कामना लुप्त हो रही है। अर्थात समाज के लिए आत्म बलिदान का भाव लुप्त ही। रही है।
 यँहा निवंधकार अपने देश के प्रति प्रेमभाव प्रकट किया है। साथ ही कंगरुरा प्रत्यांक्षी के प्रति खेद प्रकाश किया है। 

भाषा एवं व्याकरण-ज्ञान

 1. निम्नलिखित शब्दों में से अरबी-फारसी के शब्दों का चयन करो 

इमारत, नींव, दुनिया, शिवम्, जमीन, कंगूरा, मुनहसिर, अस्तित्व, शहादत, कलश, आवरण, रोशनी, बलिदान, शासक, आजाद, अफसोस, शोहरत

उत्तरः अरबी शब्द : इमारत, मृनहस्रिर, शहादत, अजाद, शोहदत

फारसी शब्द : जमीन, रोशनी, अफसोस । 

2. निम्नांकित शब्दों का प्रयोग करके वाक्य बनाओ:

 चमकीली, कठोरता, बेतहाशा, भयानक, गिरजाघर, इतिहास

उत्तरः  चमकीली :  ताजमहल  आग्रा  का  एक चमकीली  इमारत हैं  ।

कठोरता : हम  कठोरता  से  भागते  हैं  ।

बेतहाशा :  नींव की ईट अगर हिला दिया जाय, तो कंगुरा बेतहाश जमीन पर आ रहेगा।

भयानक : बाढ़ के कारण असम के कुछ लोग भयानक भूख-प्यास के  शिकार हुए  ।

गिरजाघर :  गिरजाघर ईसाई लोगों का उपसना का पवित्र स्थान है।

इतिहास  : हर देश का अपना-अपना इतिहास है। 

 3. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करो : 

(क) नहीं तो, हम इमारत की गीत नींव की गीत से प्रारंभ करते।

उत्तरः नहीं तो, हम इमारत  के  गीत नींव  के  गीत से प्रारंभ करते। 

(ख) ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य- प्रताप से फल-फूल रहे हैं।

उत्तरः ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य- प्रताप से फल-फूल  रहा  हैं।

(ग) सदियों के बाद नए समाज की सृष्ट की ओर हम पहला कदम बढ़ाए हैं।

उत्तरः सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने  पहला कदम बढ़ाए हैं।              

 (घ) हमारे शरीर पर कई अंग होते हैं।

उत्तरः हमारे शरीर के  कई अंग होते हैं।

 (ङ) हम निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।

उत्तरः हम  रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं। 

(च) सब ताजमहल की सौंदर्यता पर मोहित होते हैं।

उत्तरः सब ताजमहल की सौंदर्यता पर मोहित हुए  । 

 (छ) गत रविवार को वह मुंबई जाएगा।

उत्तरः रविवार को वह मुंबई जाएगा।

 (ज) आप कृपया हमारे घर आने की कृपा करें।

उत्तरः  कृपया  आप  हमारे घर  आए  । 

(झ) हमें अभी बहुत बातें सीखना है।

उत्तरः हमें अभी बहुत बातें सिखनी  है।

 (ब) मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद का आभास हुआ।

उत्तरः मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद मिला ।  

4. निम्नलिखित लोकोक्तियों का भाव-पल्लवन करो : 

 (क) अधजल गगरी छलकत जाए।

उत्तरः 'अधजल गगरी छलकट जाए ऑछे ब्यक्ति बहुत दिखाया करते है।   प्रयोग- है तो बह मैट्रिक फेल, परन्तु बात-बात में अंग्रेजी की तोडते हैं। सच  है अघजल गगरी छलकट जाए।

(ख) होनहार बिरबान के होत चिकने पात।

उत्तरः जिस व्यक्ति को बड़ा बनना हो, उसके लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं। प्रयोग - भीमराज जी अम्बेडकर को बचपन से ही जाना जाता था कि वह एक दिन महान व्यक्ति बनेगा। सच है होनहार विरबान के होत चिकने पात

(ग) अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।

उत्तरः काम बिगड़ जाने पर पछताना व्यर्थ है। प्रयोग - अब फेल होकर क्यों रति हो? जब पढ़ने का समय था, तव तो बाजार की सैर करते थे  । 

(घ) जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय।

उत्तरः  जिसको भगवान रक्षा करता, उसे कोई मार न सकता। प्रयोग : गायसाल रेल दृर्घटना में माँ मर गयी, लेकिन गोद में अपनी बच्ची बच गई। उसे देख लागे कहने लगा कि जाको राखे साइयाँ मार न सके कोई । 

5. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो अर्थ बताओ:

 अंबर, उत्तर, काल, नव, पत्र, मित्र, वर्ण, हार, कल, कनक

 उत्तरः   अंबर - आकाश, वस्त्र

 उत्तर - एक दिशा, जबाब

 काल - समय, मृत्यु

 नव - नया, नौ

 मित्र -  दोस्त, सूर्य

वर्ण  - जाति, अक्षर

 हार - पराजय

कल - बीता हुआ दिन, मशीन

कनक-  सोना, धतूरा

6. निम्नांकित शब्द-जोड़ों के अर्थ का अंतर बताओ:

 अगम-दुर्गम, अपराध-पाप, अस्त्र-शस्त्र, आधि-व्याधि, दुख-खेद, स्त्री- पत्नी, आज्ञा-अनुमति, अहंकार-गर्व

 उत्तरः  

 अगम - जहाँ गमन नहीं किया जा सके     ,   दुर्गम - विकट  

अपराध - भूल-चक   ,  पाप -  बुरा काम

अस्त्र - फेंक कर चलाने का हथियार , शस्त्र -  हाथ में धारण वाला हठियार

आधि -  मानसिक पीड़ा ,  व्याधि - बीमार

दुख -  विपत्ति , खेद -  शिथिलता, ग्लानि

स्त्री - नारी जाति ,  पत्नी - विवाहिता नारी

आज्ञा -  हुक्म  , अनुमति - समर्थन

अहकार  - अभिमान, घमण्ड , गर्व -  गौरव
           

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